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Amrit Anand
भाषा व्यक्ति को व्यक्ति से, जाति को जाति से राष्ट्र को राष्ट्र से मिलाती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी…
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सदगुरुदेव" जी ने कहा - हिन्दी हमारी आत्मसत्ता, निजता व सांस्कृतिक चेतना का वाक-रूपांतरण और भारतीयता की आत्म-अभिव्यक्ति है। हिन्दी से हमारी संस्कृति-संस्कार और मातृवत
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जीवन रचना में विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सदगुरुदेव" जी ने कहा - आत्मवत् सर्वभूतेषु का भाव चिरकाल से ही भारतीय संस्कृति-जीवन मूल्यों का अभिन्न अंग रहा है। इसलिए हमारी प्रार्थनाओं में वैश्विक शान्ति के
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शब्द हर मनुष्य के जीवन में कितना महत्वपूर्ण है यह वह नहीं जानता: स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - प्रत्येक प्राणी के हित में प्रकृति का परिचारिका रूप वस्तुतः ईश्वर की करुणा-अनुग्रह का ही बोध कराता है। प्रतिपल सौन्दर्य-माधुर्य से युक्त
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जीवन रचना में विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - जीवन रचना में विचारों की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वस्थ्य, विधेयक और पवित्र विचार ही सकारात्मक सृजन, जीवन सिद्धि और सफलता के उत्प्रेरक
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संग से जीवन की दिशा ही बदल जाती है : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
न्यूज़ डेस्क : पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - जैसे ही अन्त:करण में ब्रह्म जिज्ञासा की तीव्रता जागृत होती है संपूर्ण सृष्टि में माधुर्य-सौंदर्य, एकत्व, परिपूर्णता आदि दिव्य-अनुभव स्थिर होने लगते हैं ! ईश्वर का विचार शान्ति, आनन्द एवं सरसता
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जीवन में उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आत्मानुशासन परमावश्यक है
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - जीवन में उच्चतर लक्ष्यों की सिद्धि के लिए आत्म-अनुशासन आरम्भिक साधन है। जहाँ शील-संयम, सदाचार, मर्यादाओं का अनुपालन और जीवन की व्यवहारिक
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अध्यात्म के अभाव में असुख, अशाँति एवं असंतोष की ज्वालाएँ मनुष्य को घेरे रहती है : स्वामी अवधेशानन्दं…
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - भ्रम-भय, द्वंद, अवसाद-अभाव आदि मनुष्य मन की सम्पूर्ण समस्याओं से निवृत्ति का एकमात्र मार्ग है - अध्यात्म ! भारतीय संस्कृति चिरकाल
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गुरुदेव जी भारतीय संस्कृति के ऐसे शिखर पुरुष थे : स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य सद्गुरूदेव जी ने कहा - संन्यास परंपरा के आदर्श, भारत माँ के परम आराधक, भारतमाता मंदिर (हरिद्वार) एवं समन्वय सेवा ट्रस्ट के संस्थापक परम पूजनीय पद्मभूषण से अलंकृत
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योग नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचार में बदलता है: स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के शुभ अवसर पर देशवासियों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा - अथ योगानुशासनम् ' जीवन की परिपूर्णता-सिद्धि, समाधान व मनुष्य
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जीवन में हमेशा आदर का बीज लेकर चलें उससे आपको आदर मिलेगा: स्वामी अवधेशानन्दं जी महाराज
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - कठिन कलिकाल में भगवन्नाम स्मरण ही सर्वोत्तम साधन है। अतः सर्वतोभावेन भगवद-विधान के प्रति समर्पित रह कर नामस्मरण करते रहें ..! कलियुग में नाम
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