2003 जैसे आएंगे म.प्र. विस चुनाव के परिणाम ?

भोपाल। म.प्र. विधानसभा का 28 नवंबर को मतदान होने के बाद मतदाताओं का जो रुझान 230 विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिला है, उसके अनुसार मप्र में कांग्रेस को 229 सीटों में 44.80 फीसदी मत प्राप्त हो रहे हैं। भाजपा को 38.30 फीसदी मत प्राप्त हो रहे हैं, वहीं बसपा को 5.40 फीसदी मत मिल रहे है। सपा को मात्र 1 फीसदी वोट मिल रहे हैं। इस चुनाव में 8.30 फीसदी मत निर्दलियों को मिल रहे है। नोटा एवं अन्य को 2.23 फीसदी वोट इस चुनाव में मिलने की संभावना मतदाताओं के रूझान से बनी है।

कांग्रेस का वोट बैंक 2013 की तुलना में 8.42 फीसदी बढ रहा है। ठीक इसी अंदाज में भाजपा का वोट वर्ष 2003 में बढा था। कांग्रेस के वोट बढ़ने से उसे 146 सीटों पर विजय होते दिख रही है। भाजपा का वोट बैंक इस चुनाव में 2013 की तुलना में 6.57 फीसदी घट रहा है। भाजपा को वोट कम मिलने से लगभग 80 सीटों पर जीतने की उम्मीद है। बसपा का वोट बैंक भी 2013 की तुलना में इस चुनाव में 0.85 फीसदी वोट घट रहे है। उसके बाद भी उसे चार सीटें मिल रही है। निर्दलियों को इस चुनाव में 8.30 फीसदी वोट मिल रहे हैं। उन्हें 10 सीटे मिलती दिख रही है। इस चुनाव में नोटा एवं अन्य को 2.23 फीसदी मत प्राप्त हो रहे है। सपा को 0.90 फीसदी वोट मिलते दिख रहे है। इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है।

2018 का विधानसभा वर्तमान चुनाव भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजगी वाला चुनाव रहा है। मप्र के इस विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के पास ठोस विकल्प ना होने से इसका फायदा कांग्रेस को मिला है। कांग्रेस के चुनाव अभियान के दौरान वचन पत्र में जो घोषणायें की हैं। उसका असर समाज के सभी वर्गों पर पड़ा है। कांग्रेस ने किसानों को दो लाख तक कर्ज 10 दिन के अंदर माफ करने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने शासकीय संविदा कर्मचारियों के नियमतीकरण जैसे बचनों ने मतदाताओं को लुभाया है। इसका असर मतदान में पड़ा है। इसका फायदा भी कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं का रुझान देखने को मिल रहा है।

भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा नेताओं, विधायकों के अहंकार के कारण हो रहा है। सर्वें के दौरान मतदाताओं ने योजनाओं और विकास को लेकर शिवराज सरकार की तारीफ की। किन्तु मतदाता इस बार आरक्षण, पेट्रोल-डीजल, गैस की बढ़ती कीमतों, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से परेशान था। गैस एवं पेट्रोल का उपयोग अब गरीब और मजदूर भी कर रहे हैं। सरकार गैस एवं पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रित नहीं कर पाई। अच्छे दिनों का जो वादा मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान किया था, उससे मतदाताओं को बड़ी आशायें थीं। 2018 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की नाराजगी इसी बात पर थी। नोटबंदी के कारण प्रदेश में कई छोटे मध्यम उद्योग-धंधे बंद हुए जिसके कारण असंगठित क्षेत्र में बेराजगारी बढ़ी है। वहीं जीएसटी के कारण भी व्यापारियों की नाराजी स्पष्ट रुप से इस चुनाव में देखने को मिली है।

मप्र विधानसभा के इस चुनाव में किसान बीज, खाद और डीजल की बढ़ती कीमतों से नाराज थे। फसल आने पर मंडियों में उसके दाम नहीं मिले। मंडियों में माल बेचने के लिए किसानों को इसे चार दिन मंडियों में रूखना पड़ता है। समर्थन मूल्य एवं भावांतर के पंजीयन बार-बार कराने, फोटो कापी और पंजीयन में हजारों रुपयों के अतिरिक्त खर्च ने किसानों की नाराजी बढ़ी दी है। प्रदेश सरकार ने किसानों को ब्याज एवं भावांतर में जो राशि खर्च की। उसका लाभ किसानों के स्थान पर बिचौलियों को मिला। जिससे किसानों की नाराजगी मतदान तक बनी रही।

इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है। सपा-बसपा, सपाक्स का कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिला। बसपा के प्रभाव वाले क्षेत्रों में जो चार उम्मीदवार जीतने की स्थिति में थे, वहां अच्छा मतदान हुआ। 220 विधानसभा क्षेत्रों में बसपा की स्थिति नगण्य रही है। सपा का प्रभाव भी केवल तीन सीटों पर मिला। किन्तु जीतने की स्थिति किसी की नहीं थी। बागी उम्मीदवार कांग्रेस एवं भाजपा के चुनाव मैदान में उतरे हैं। 10 सीटों पर निर्दलीय बागियों की स्थिति जीतने वाली देखने को मिली है। इस बार नोटा का प्रभाव ज्यादा देखने को नहीं मिला। इसके बाद भी लगभग 2.23 फीसदी वोट नोटा एवं अन्य में पड रहे हैं।

मप्र विधानसभा 2018 का चुनाव भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्से का चुनाव था। इसमें प्रमुख रुप से भाजपा नेताओं का अहंकार सवर्ण समाज में माई का लाल जैसी चुनौती, महंगाई ,नोटबंदी और जीएसटी की नाराजगी ने 2003 के चुनाव की यादें ताजा करा दी है। 2003 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एसटी-एससी वोट बैंक को ध्यान में रखकर मध्यमवर्ग और स्वर्ण समाज को नाराज कर दिया था। बिजली और सड़क को लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी देखने को मिली थी। वही स्थिति 15 वर्ष बाद 2018 में भाजपा के खिलाफ मतदाताओं में देखने को मिली है। जिसके कारण इस चुनाव के परिणाम काफी आश्चर्यचकित करने वाले साबित हो रहे है। 230 विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं से बातचीत करने से जो रूझान मिला है उसके 2003 की यादें ताजा कर रही है।

वर्ष 2018 पूर्व अनुमान मत प्रतिशत वर्ष 2013 मत प्रतिशत वर्ष 2003 मत प्रतिशत
कांग्रेस- 44.80 प्रतिशत – 36.38 प्रतिशत – 31.61 प्रतिशत
भाजपा- 38.30 प्रतिशत – 44.87 प्रतिशत – 42.50 प्रतिशत
बसपा- 5.47 प्रतिशत – 6.29 प्रतिशत – 7.26 प्रतिशत
सपा- 0.90 प्रतिशत – 0.03 प्रतिशत – 3.71 प्रतिशत
निर्दलीय- 8.30 प्रतिशत – 5.38 प्रतिशत – 7.71 प्रतिशत
नोटा एवं अन्य- 2.23 प्रतिशत – 7.05 प्रतिशत – 721 प्रतिशत

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