सात साल लगे सीए बनने में, इंडिया में सबसे युवा सीकासा चेयरमेन इंदौर से

सात साल लगे सीए बनने में, इंडिया में सबसे युवा सीकासा चेयरमेन इंदौर से
इंदौर। 12 वीं क्लास तक मेरिट होल्डर बने रहना। उसके बाद सीए बनने के लिए सात साल का लंबा समय लगाना, लेकिन अपनी जिद, जुनून को नहीं छोड़ा और 2015 में सीए फायनल कर अपनी मंजिल पा ही ली। जब सीए फायनल के पेपर के एक दिन पहले घर पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी और पापा अस्पताल में भर्ती हुए उसी समय सोच लिया था कि इस बार के बाद अब एक्जाम नहीं दूंगा। फायनली रिजल्ट आया और शहर में अच्छी रैंक भी लगी। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और जज्बे से आज बेहतर मुकाम हासिल करने वाले सीए आनंद जैन के जीवन की कहानी ऐसी ही कुछ है। 2015 में सीए बनने के बाद खुद की प्रैक्टिस शुरु की और महज 9 महीने के अंदर इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में शामिल हो गए। 1 जुलाई को सीए डे मनाया जा रहा है। इसे लेकर खास रिपोर्ट-
सीए जैन ने बताया 2015 में फायनल करने के बाद खुद की प्रैक्टिस शुरु की। मैं मूलत: झाबुआ(पेटलावाद) का रहने वाला हूं। 12वीं तक निवास से पढ़ाई की, सीए की तैयारी के लिए इंदौर बस गया। परिवार नहीं चाहता था कि मैं सीए करूं, क्योंकि सभी का कहना था कि मैं फैमली बिजनेस संभालू। अपनी नई पहचान और बेहतर मुकाम हासिल करने के उद्देश्य से 2008 में इंदौर आकर सीपीटी की परीक्षा दी। पहली ही बार में उसे क्लियर कर लिया। इससे मुझमें कांफिडेंस लेवल भी बढऩे लगा और परिवार को भी मेरा डिसीजन सही लगने लगा। सीपीटी क्लियर करने के बाद पीसीसी में दो अटैम्प लगे और फायनल में पूरे चार साल। इस बीच कई बार सीए बनने की चाहत दूर होती नजर आई, लेकिन कांफिडेंस लेवल कम नहीं होने दिया और मुकाम हासिल किया।
इंदौर को दिलवाया बेस्ट ब्रांच का का अवॉर्ड
सीए जैन  इंडिया में सबसे युवा सीकासा चेयरमेन(स्टूडेंट एसोसिएशन) रहे हैं। वर्ष 2016-17 में करीब देशभर के 25 हजार स्टूडेंट्स के चेयरमेन रहने का खिताब उन्हें जाता है। इंदौर सीए ब्रांच को पूरे इंडिया की बेस्ट ब्रांच का अवॉर्ड दिलवाने का खिताब भी इन्हें ही जाता है। हालांकि इससे पहले भी अवॉर्ड ब्रांच को मिल चुका है लेकिन सबसे यंगेस्ट सीए में उनका नाम शामिल है। 
12वीं तक मेरिट होल्डर, सीए बनने में चखा फेल होने का स्वाद
वे बताते हैं 12वीं क्लास में मेरिट होल्डर रहा हूं। सीपीटी क्लियर करने के बाद और सीए बनने के बीच मैंने पहली बार फेल होने का स्वाद चखा। यह कितना कड़वा होता है यह मुझे तब पता चला जब दूसरे साथी मुझसे आगे निकल गए और मैं वहीं का वहीं रह गया। कई बार दोस्तों ने मुझे कोर्स छोडऩे का कहा लेकिन मैं अपने साथ किसी भी तरह का कॉम्प्रोमाइज नहीं करना चाहता था। आर्टिकलशिप को लेकर वे बताते हैं जहां मैं आर्टिकलशिप करना चाहता था वहां सर ने एक शर्त रखी कि तुम हिंदी मीडियम से और मेरे यहां आर्टिकलशिप करना चाहते हो तो तुम्हे इंग्लिश में  पढ़ाई करना होगी। सर ने कहा मैं जानता हूं तुम कर सकतो हो बस आवश्यकता है आत्म चिंतन की। उनकी बातों से प्रेरणा लेकर आज मैं एक बेहतर मुकाम पर हूं।
 
 
 
 

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